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September 1, 2025

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पितरों की शांति के लिए भाद्रपद पूर्णिमा पर करें तर्पण, जानें कौन-सा स्तोत्र है प्रभावी

भाद्रपद मास की पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है, जो पितरों के प्रति श्रद्धा और तर्पण का समय होता है। इस वर्ष, भाद्रपद पूर्णिमा 15 सितंबर 2025, सोमवार को है। माना जाता है कि इस दिन पितरों का तर्पण करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

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पितरों का महत्व और पितृ दोष

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के बाद भी आत्मा का अस्तित्व रहता है और वे अपने परिवार से जुड़ी रहती हैं। पितृ दोष तब होता है जब पूर्वजों की आत्मा को शांति नहीं मिलती या उनका सम्मान नहीं किया जाता। इसके कारण व्यक्ति को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि विवाह में देरी, संतान प्राप्ति में बाधा, आर्थिक परेशानी और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं। पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने और उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने से इन दोषों से मुक्ति मिलती है।

भाद्रपद पूर्णिमा को तर्पण का महत्व

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को जल अर्पित करें। इस दौरान जल में तिल, जौ और कुशा मिलाना शुभ माना जाता है। तर्पण के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराना या दान देना भी बहुत पुण्य का काम माना जाता है।

पितृ दोष से मुक्ति के लिए स्तोत्र

पुराणों में पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए कई स्तोत्र और मंत्र बताए गए हैं। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पितरों का तर्पण करते समय ‘पितृ गायत्री मंत्र’ का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से पितरों को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पितृ गायत्री मंत्र:

ॐ पितृगणाय विद्महे जगत् धारिण्ये धीमहि तन्नो पितृः प्रचोदयात्।

मंत्र का महत्व:

इस मंत्र का जाप करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यह मंत्र पितरों को शांति प्रदान करता है और उन्हें मोक्ष की ओर ले जाता है। इसके अलावा, इस दिन पितृ सूक्त और गरुड़ पुराण का पाठ भी किया जा सकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पितृ पक्ष में किसी भी तरह के शुभ कार्य जैसे विवाह या गृह प्रवेश नहीं किए जाते हैं। यह समय केवल पितरों को याद करने और उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए होता है। इस दिन किए गए दान-पुण्य और तर्पण से न केवल पितृ दोष से मुक्ति मिलती है, बल्कि परिवार में शांति और समृद्धि भी आती है।

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