सिंधु जल समझौते को लेकर भले ही राजनीतिक मंचों पर वाकयुद्ध तेज हो गया हो, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिए फिलहाल पश्चिमी नदियों—झेलम, चिनाब और सिंधु—के पानी के प्रवाह को रोकना या मोड़ना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल्स (SANDRP) के क्षेत्रीय जल संसाधन विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के पास इस कार्य के लिए जरूरी बड़ी स्टोरेज और नहरों का आवश्यक बुनियादी ढांचा नहीं है। भारत में मौजूदा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स मुख्यतः रन-ऑफ-रिवर आधारित हैं, जो बिना बड़े जलाशयों के काम करते हैं और केवल बहते पानी के बल पर बिजली उत्पादन करते हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि बुनियादी ढांचे की इसी कमी के कारण भारत सिंधु जल संधि के तहत पश्चिमी नदियों से मिलने वाले 20% पानी का भी पूर्ण उपयोग नहीं कर पा रहा है। वर्षों से स्टोरेज निर्माण की मांग उठती रही है, लेकिन पाकिस्तान हर बार संधि के प्रावधानों का हवाला देकर इसका विरोध करता रहा है।
अब विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत बिना पाकिस्तान को सूचित किए मौजूदा बुनियादी ढांचे में बदलाव कर सकता है या नए जल परियोजनाओं का निर्माण कर सकता है। इससे भारत अपने हिस्से के पानी का बेहतर प्रबंधन कर सकेगा, और संभवतः अतिरिक्त पानी को रोका या उसका मार्ग बदला जा सकेगा। हालांकि, इस दिशा में प्रगति के लिए समय, संसाधन और रणनीतिक धैर्य की आवश्यकता होगी। कुल मिलाकर, सिंधु जल समझौते को रद्द करना तो फिलहाल कठिन है, लेकिन अपने जल संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए भारत के पास अब भी कई व्यावहारिक विकल्प मौजूद हैं।
More Stories
कैबिनेट मंत्री एवम भटगावँ विधायक लक्ष्मी राजवाड़े संगठन के जनप्रतिनिधियो एवम कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद, समाधान की ओर सरकार
छत्तीसगढ़ में गर्मी का प्रकोप: स्कूलों का समय बदला, अब सुबह 7 से 11 बजे तक ही लगेंगी कक्षाएं
AC पर दिए स्टार का क्या है असली मतलब? जानिए क्यों हो जाते हैं ज्यादातर लोग कन्फ्यूज