- रायपुर, कोरबा, 15 अप्रैल 2025 – छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक और दिल दहला देने वाली घटना ने प्रशासनिक उपेक्षा और हठधर्मिता की गंभीरता को उजागर कर दिया है। पंचायत सचिव राजकुमार कश्यप की हड़ताल के दौरान अचानक तबीयत बिगड़ने से मौत हो गई, जिसने पूरे सचिव समुदाय को झकझोर कर रख दिया है। सचिव कश्यप अपनी जायज मांगों के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, लेकिन सरकार की लगातार अनदेखी और संवेदनहीन रवैये ने अंततः एक ज़िंदग़ी छीन ली।
राजकुमार कश्यप, उड़ता गांव के निवासी और कुटेलामुंडा पंचायत में सचिव के पद पर पदस्थ थे। वे बीते कई दिनों से सचिव संघ के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन में शामिल थे। अत्यधिक गर्मी और थकावट के कारण उनकी तबीयत बिगड़ी और विनायक अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। इस दर्दनाक घटना के बाद सचिव संघ और आम नागरिकों में जबरदस्त आक्रोश है।
प्रशासन की चुप्पी, जनहित के खिलाफ रवैया
राजकुमार की मौत कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि प्रशासनिक हठधर्मिता का नतीजा है। जब लगातार चेतावनी दी जा रही थी, जब बार-बार सचिव संघ अपनी समस्याओं और मांगों को रख रहा था, तब शासन का चुप रहना न सिर्फ असंवेदनशीलता दर्शाता है बल्कि यह आम जनता और समाज के प्रति सरकार की जवाबदेही पर भी सवाल खड़ा करता है। यह घटना दिखाती है कि किस प्रकार प्रशासन का अड़ियल रवैया न केवल कर्मचारियों के जीवन को खतरे में डाल रहा है, बल्कि गांवों में विकास कार्य भी ठप हो चुके हैं, जिससे आमजन सीधे प्रभावित हो रहे हैं।
सचिव संघ की चेतावनी
राजकुमार कश्यप की मौत को ‘प्रशासनिक लापरवाही से हुई मौत’ करार देते हुए सचिव संघ ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर सरकार अब भी नहीं जागी और उनकी मांगों पर सकारात्मक कार्रवाई नहीं की गई, तो आंदोलन और उग्र होगा। संघ ने राजकुमार के परिजनों के लिए मुआवजे और सरकारी नौकरी की मांग करते हुए इसे प्रशासन के लिए आखिरी चेतावनी बताया।
समाज को हो रहा व्यापक नुकसान
हड़ताल के चलते पंचायत स्तर के सभी कार्य प्रभावित हो रहे हैं – मिड डे मील से लेकर जनकल्याण योजनाएं ठप हैं। गांवों में न जलसंकट का समाधान हो रहा, न ही पेंशन वितरण जैसे जरूरी कार्य। यदि सरकार ने जल्द कोई हल नहीं निकाला, तो इसका खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ेगा।
निष्कर्ष
राजकुमार कश्यप की मौत एक व्यक्ति की नहीं, एक व्यवस्था की विफलता की कहानी है। यह एक चेतावनी है कि अगर प्रशासन अब भी नहीं चेता, तो इसका असर केवल आंदोलन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि जनजीवन और शासन व्यवस्था दोनों पर गहरा असर डालेगा।
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