29 जुलाई 2025 को पूरे भारत में धूमधाम से मनाई गई नाग पंचमी, मंगला गौरी व्रत ने बढ़ाया उत्साह
नाग पंचमी : पूरे भारतवर्ष में बड़े हर्षोल्लास और धार्मिक श्रद्धा के साथ नाग पंचमी का पर्व मनाया गया। यह पर्व सावन मास की कृष्ण पक्ष की नाग पंचमी को पड़ता है और इस वर्ष यह दिन मंगलवार के शुभ दिन पर आया, जिससे इसकी महत्ता और भी बढ़ गई। नाग पंचमी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो नाग देवता की पूजा को समर्पित है। इस दिन श्रद्धालु दूध, फूल, चंदन, सिंदूर, तथा अन्य पवित्र सामग्री लेकर विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं। विशेष रूप से प्रदेशों में लोग अपने घरों, खेतों, और मंदिरों में नाग देवताओं की प्रतिमाएं स्थापना कर पूजा करते हैं।
नाग पंचमी का मुख्य उद्देश्य कालसर्प दोष, सर्पदंश, और जीवन की अन्य प्रतिकूलताओं एवं बाधाओं से रक्षा हेतु नाग देवता का आशीर्वाद प्राप्त करना है। माना जाता है कि नाग देवता की आराधना से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है, संतान सुख की प्राप्ति होती है और आर्थिक समृद्धि आती है। इस वर्ष पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5:41 बजे से लेकर 8:23 बजे तक था, जिसके अनुसार प्रातःकाल ही श्रद्धालुओं ने विधिवत पूजा-अर्चना की।
नाग पंचमी पूजा के दौरान भगवान शिव की भी विशेष आराधना की जाती है, क्योंकि शिव जी को नाग देवताओं का सहोदर और संरक्षक माना जाता है। शिवलिंग पर जलाभिषेक के साथ ही नाग देवता के चित्रों और मूर्तियों पर चढ़ावा अर्पित किया गया। लोग अपने परिजनों और समाज के कल्याण के लिए विशेष प्रार्थना करते हुए नाग देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
इस बार नाग पंचमी के साथ ही मंगलवार के व्रत मंगला गौरी की परंपरा भी जुड़ी हुई थी, जो खासतौर पर विवाहित महिलाओं द्वारा पति की दीर्घायु और परिवार के सुख-समृद्धि के लिए रखी जाती है। मंगला गौरी व्रत के कारण इस साल व्रत का महत्व और भी बढ़ गया जिससे श्रद्धालुओं की भागीदारी में वृद्धि हुई। महिलाएं सावन अर्थात श्रावण मास के इस मंगलवार को विधि विधान से व्रत रखकर मां गौरी की पूजा करती हैं तथा अपने परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं। अविवाहित कन्याएं भी इस व्रत को अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए करती हैं।
देश के विभिन्न हिस्सों में नाग पंचमी के आयोजन के तरीके में कुछ भेद हो सकते हैं, परंतु मुख्य भावना एक ही है—सर्पों और प्रकृति के बीच सम्मान और सहअस्तित्व का संदेश देना। नाग पंचमी पर बच्चों को सर्पों की कथाएं सुनाई जाती हैं, साथ ही कला और संस्कृति को समर्पित कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। खासतौर पर महाराष्ट्र, उत्तर भारत, मध्य भारत, और दक्षिण भारत में इस दिन को बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
पर्यावरण और जीवन के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए इस पर्व का विशेष संदेश भी होता है। नाग पंचमी हमें यह समझाता है कि हम सभी जीवधारियों के साथ सम्मानपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंध बनाएं रखें, क्योंकि सभी का जीवन एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। प्रकृति और जंतु जीवन के बीच सह-अस्तित्व के इस पर्व से यह शिक्षा मिलती है कि हमें जीव-जंतुओं, विशेषकर सापों की रक्षा करनी चाहिए और उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।
इस बार मंदिरों में नाग पंचमी की विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन भी हुए। पूजा स्थल पर सांपों की विभिन्न आकृतियों से सजावट की गई। कई स्थानों पर नाग मंत्रोच्चार और भजन-कीर्तन कीर्तन का आयोजन भी हुआ। श्रद्धालुओं ने विभिन्न तरह के नैषध भोजन से व्रत का पालन किया, जिसमें फल, दूध, सात्विक व्यंजन, और हल्का भोजन सम्मिलित था।
सरकार द्वारा भी इस पर्व को लेकर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए ताकि लोग नागों के प्रति सही व्यवहार और उनके संरक्षण के महत्व को समझें। वन विभाग की ओर से सांपों के संरक्षण और सुरक्षित रहन-सहन के प्रति विशेष संदेश दिए गए।
अंत में, नाग पंचमी और मंगला गौरी व्रत ने इस सावन को और भी धार्मिक और आध्यात्मिक बना दिया। श्रद्धालुओं ने इस पावन पर्व पर अपने हृदयों को शुद्ध करते हुए पूजा-अर्चना की और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्त होकर सुख-शांति की कामना की। इस प्रकार 29 जुलाई 2025 का दिन देश में धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक समृद्धि और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक बनकर उभरा।
यह पर्व न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और पारिस्थितिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। नाग पंचमी का संदेश हमें अपने पर्यावरण और जीव-जंतुओं के प्रति दयालु और संवेदनशील बनने की प्रेरणा देता है। ऐसे पावन पर्व हमारी संस्कृति के अमूल्य हिस्से हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी जन-जन तक पहुंचते हैं और समाज को एकजुट करते हैं।
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