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August 5, 2025

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Outsourcing कर्मियों के लिए अवकाश नियम 2021: महत्वपूर्ण सरकारी पत्र में विवरण

छत्तीसगढ़ में Outsourcing कर्मचारियों की कानूनी स्थिति, अन्य कई राज्यों की तरह, जटिल और असुरक्षित बनी हुई है। ये कर्मचारी सरकारी विभागों में काम करते हुए भी कानूनी रूप से सरकारी कर्मचारी नहीं माने जाते — उनका नियोक्ता वास्तव में सरकारी एजेंसी नहीं, बल्कि निजी Outsourcing कंपनी या सेवा प्रदाता होती है। इसी वजह से वे राज्य या केंद्र सरकार की सेवा नियमावली, वेतन संरचना और सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों से वंचित रहते हैं, जिससे उनकी नौकरी में असुरक्षा, वेतन-भेदभाव और सामाजिक सुरक्षा की गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

उत्तर प्रदेश का July 2021 का आदेश: एक मिसाल
उत्तर प्रदेश सहित कुछ अन्य राज्यों की अदालतों और सरकारों ने आउटसोर्स कर्मचारियों के हक में अहम फैसले दिए हैं। जैसे:

  • अदालतों ने Outsourcingकर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन और “समान कार्य के लिए समान वेतन” के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए आदेश दिए हैं।

  • राज्य सरकारों ने वेतन पूरी पारदर्शिता के साथ बैंक खातों में देने, समय पर भुगतान, तथा सेवा सुरक्षा से जुड़े निर्देश भी जारी किए हैं।

  • उत्तर प्रदेश मॉडल दिखाता है कि यदि सरकार चाहे तो आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए नीतिगत परिवर्तन व कानूनी संरक्षण की स्पष्ट व्यवस्था बना सकती है।

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Outsourcing कर्मचारियों के हक में अहम फैसला

समस्या:

  • Outsourcing कर्मी केवल कागजों पर निजी कंपनी के कर्मचारी होते हैं, पर असल में सरकारी कार्यालयों के तयशुदा कार्य करते हैं।

  • उनके लिए सेवा की सुरक्षा, छुट्टियाँ, वेतनवृद्धि, सामाजिक सुरक्षा जैसी सुविधाएँ स्पष्ट रूप से लागू नहीं होतीं, जिससे उनका भविष्य बेहद असुरक्षित और अधिकार हमेशा खतरे में रहते हैं।

संभावित समाधान:

  • छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्य सरकारें उत्तर प्रदेश जैसे नीतिगत मॉडल और अदालत के आदेशों को अपनाकर कानून एवं नीतियों में बदलाव करें, ताकि Outsourcing कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन, सेवा सुरक्षा और सामाजिक अधिकार मिल सकें।

  • कर्मचारियों और यूनियनों को सामाजिक जागरूकता बढ़ानी चाहिए और कानूनी और प्रशासनिक मंचों का इस्तेमाल कर अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए दबाव बनाना चाहिए।

छत्तीसगढ़ में वर्तमान में जितने भी Outsourcing कर्मचारी हैं, वे सरकारी विभागों में दिन-रात काम करते हैं, फिर भी उन्हें सरकारी नौकरी और उससे जुड़े अधिकार कानूनी रूप से प्राप्त नहीं होते। असल में उनका सीधा नियोक्ता विभाग नहीं, बल्कि कोई बाहरी निजी एजेंसी होती है, इसलिए उन्हें सरकारी सेवा नियमों, सामाजिक सुरक्षा, और नियमित वेतनमान का कोई लाभ नहीं मिलता। इसी वजह से उनकी नौकरी हमेशा असुरक्षित रहती है और शोषण के अनेक मामले सामने आते हैं।

उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने दिखाया है कि सरकारें चाहें तो नीति और कानून में बदलाव कर, अदालतों के आदेशों को लागू कर Outsourcing कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन, नियमित वेतन भुगतान और कुछ हद तक सामाजिक सुरक्षा देने के प्रभावशाली कदम उठा सकती हैं। ऐसे उदाहरण छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों के लिए उम्मीद और प्रेरणा का कारण बन सकते हैं।

मूल समस्या यही है कि Outsourcing कर्मचारियों की कमजोर कानूनी स्थिति उनके भविष्य को हमेशा अनिश्चित और असुरक्षित बनाए रखती है। समाधान की दिशा तभी खुलेगी जब राज्य सरकारें उत्तर प्रदेश के मॉडल को अपनाकर या अपनी परिस्थितियों के अनुसार नीतियाँ बनाकर इन कर्मचारियों को सम्मानजनक, सुरक्षित और अधिकार-सम्मत कार्यस्थल दें

अवकाश की विस्तृत सूची

पत्र में उल्लेखित प्रमुख अवकाश और उनकी गणना निम्न प्रकार है:

क्रम संख्या अवकाश का प्रकार अवधि दिन
1 आकस्मिक अवकाश वार्षिक 10 दिन
2 चिकित्सीय अवकाश वार्षिक 15 दिन
3 सामाजिक/राष्ट्रीय अवकाश वार्षिक 06 दिन
4 अर्जित अवकाश वार्षिक 15 दिन
5 साप्ताहिक अवकाश प्रत्येक सातवें दिन 01 दिन
6 मातृत्व अवकाश 180 दिन

श्रम विभाग का स्पष्ट निर्देश

पत्र में कहा गया है कि यह दिशा-निर्देश सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के अनुमव-2 के तहत, 25 अगस्त 2020 से लागू श्रम विधियों के आलोक में निर्धारित किए गए हैं। विभाग ने सभी संबंधित कार्यालयों को निर्देशित किया है कि वे Outsourcing के तहत कार्यरत कर्मचारियों को अंगीकृत इन अवकाशों का लाभ दिलाएं।

जानकारी हेतु पोर्टल

अधिकारियों, कर्मचारियों और आम नागरिकों के लिए श्रम से संबंधित विस्तृत जानकारी विभागीय पोर्टल uplabour.gov.in पर उपलब्ध है, जहां वे नियमों और प्रक्रियाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

यह आदेश श्रमिकों की भलाई और कल्याण की दिशा में सरकार द्वारा उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे संगठनात्मक पारदर्शिता और श्रमिक अधिकार महत्वपूर्ण रूप से मजबूत होंगे।

 

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