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November 27, 2025

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Chhattisgarh

Editorial-9: Chhattisgarh राज्य की स्थापना किसके लिए और क्यों?

​🇮🇳 Editorial-9: Chhattisgarh राज्य की स्थापना किसके लिए और क्यों?

​राज्य (यानी एक संगठित शासन इकाई) की स्थापना का मुख्य उद्देश्य उसके नागरिकों को एक ऐसा वातावरण प्रदान करना है जहाँ वे बिना डर के सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें और अपनी क्षमता का पूरा विकास कर सकें।

​1. सुरक्षा और न्याय

  • बाहरी खतरों से सुरक्षा: राज्य का प्राथमिक कार्य अपने नागरिकों को बाहरी आक्रमणों या खतरों से बचाना है।
  • आंतरिक शांति और व्यवस्था: यह सुनिश्चित करना कि देश के भीतर कानून का शासन (Rule of Law) हो, अपराधों पर नियंत्रण हो, और नागरिकों को न्याय मिल सके।

​2. जनकल्याण और विकास

  • आर्थिक विकास: राज्य आर्थिक नीतियाँ बनाता है, जिससे रोज़गार सृजन हो, गरीबी कम हो और सभी को समान अवसर मिलें।
  • सामाजिक न्याय: समाज के कमज़ोर और वंचित वर्गों की सुरक्षा और उत्थान के लिए नीतियाँ बनाना, ताकि शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं तक सभी की पहुँच सुनिश्चित हो।
  • बुनियादी ढाँचा: सड़क, बिजली, पानी, संचार और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे आवश्यक बुनियादी ढाँचों का निर्माण और रखरखाव करना, जो नागरिकों के जीवन को सुगम बनाते हैं।

​3. पहचान और संस्कृति

  • सांस्कृतिक संरक्षण: राज्य नागरिकों की विविधतापूर्ण संस्कृति, भाषा और विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने का काम करता है।
  • पहचान का स्रोत: एक राज्य अपने नागरिकों को एक सामूहिक पहचान और विश्व व्यवस्था में एक स्थान प्रदान करता है, जिससे उनके लिए अपना अस्तित्व बचाए रखना संभव होता है।

​संवैधानिक आधार (भारत के संदर्भ में)

​भारतीय संविधान में, राज्यों की स्थापना का आधार और उद्देश्य स्पष्ट है।

  • अनुच्छेद 2: संसद को यह अधिकार देता है कि वह भारत संघ में नए क्षेत्रों को शामिल करे या नए राज्यों की स्थापना करे (जैसे सिक्किम को शामिल किया गया)।
  • अनुच्छेद 3: संसद को यह अधिकार देता है कि वह मौजूदा राज्यों की सीमाओं, क्षेत्रों या नामों में परिवर्तन करके नए राज्य बनाए (जैसे Chhattisgarh, तेलंगाना या झारखंड का गठन)।

​संक्षेप में, राज्य की स्थापना ‘जनता के लिए’ की जाती है, ताकि वह एक संप्रभु इकाई के रूप में कार्य करते हुए अपने नागरिकों के जीवन को सुरक्षित, समृद्ध और सार्थक बना सके।

अब बात करते हैं Chhattisgarh राज्य का गठन 01 नवंबर 2000 को क्यों हुआ?

Chhattisgarh का उदय—एक सपना जो ज़रूरत बन गया

1. एक नए अध्याय की शुरुआत

🌄 1 नवंबर 2000 का दिन Chhattisgarh के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। इसी दिन, लंबे संघर्ष और जन-आकांक्षाओं के बाद, मध्य प्रदेश से अलग होकर Chhattisgarh भारत के 26वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। यह मात्र एक प्रशासनिक विभाजन नहीं था, बल्कि एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक-आर्थिक न्याय की जीत थी।

🗣️ विभाजन के मूल कारण – Chhattisgarh का गठन केवल प्रशासनिक सुविधा के लिए नहीं हुआ था। यह विभाजन दशकों से उपेक्षित जन आकांक्षाओं का परिणाम था। यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट Chhattisgarh की सांस्कृतिक पहचान और भाषाई विविधता को मान्यता दिलाना चाहता था। सबसे महत्वपूर्ण, यह विभाजन विकास की गहरी असमानता को दूर करने का एक प्रयास था, जहाँ संसाधन संपन्न होने के बावजूद, यह क्षेत्र मध्य प्रदेश के केंद्र द्वारा लगातार उपेक्षित रहा था।

🤔 आकांक्षाओं की कसौटी
Chhattisgarh के गठन के 25 साल बाद यह सवाल गंभीर है: क्या मूल आकांक्षाएँ पूरी हुईं? राज्य ने भले ही अपनी सांस्कृतिक पहचान स्थापित कर ली है और प्रशासनिक विकेंद्रीकरण हुआ है, लेकिन आर्थिक असमानता, नक्सलवाद और संसाधनों के बावजूद गरीबी जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। यह दिखाता है कि न्याय और विकास का एजेंडा अभी भी अधूरा है।

2. गठन के मूल कारण: ज़रूरत क्यों पड़ी?

🗣️ विशिष्ट Chhattisgarh की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान
Chhattisgarh का क्षेत्र मध्य प्रदेश के मुख्य भूभाग (मालवा और मध्य क्षेत्र) से अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के कारण अलग होना चाहता था। जहाँ मुख्य मध्य प्रदेश में हिंदी की मालवी, बुंदेली और अन्य उप-बोलियाँ प्रचलित थीं, वहीं Chhattisgarh में छत्तीसगढ़ी भाषा बोली जाती थी, जिसकी अपनी एक समृद्ध मौखिक परंपरा और साहित्य है।
यह अंतर केवल बोली तक सीमित नहीं था; संस्कृति, खान-पान, लोक-नृत्य (जैसे पंडवानी) और आदिवासी परंपराओं (जैसे सरहुल) में भी स्पष्ट भिन्नता थी। इस विशिष्ट पहचान को बड़े राज्य में पर्याप्त सम्मान और प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता था, जिससे स्थानीय लोगों में उपेक्षा की भावना घर कर गई थी। नए राज्य का गठन इसी आत्म-पहचान को संवैधानिक मान्यता दिलाने का एक प्रयास था।

🌲 आदिवासी प्रभुत्व और उपेक्षा- Chhattisgarh का विभाजन इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि यह क्षेत्र बड़ी आदिवासी आबादी का घर है। इनकी विशिष्ट जीवनशैली, परंपराएँ और सामाजिक ज़रूरतें मुख्य मध्य प्रदेश की आबादी से पूरी तरह अलग थीं।

पुराने, बड़े राज्य के राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र (भोपाल/जबलपुर) की दूरी के कारण, इस आबादी को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता था। आदिवासी क्षेत्रों के विकास और उनसे जुड़े मुद्दों, जैसे वन अधिकार और स्थानीय स्वशासन, पर केंद्र का ध्यान कम था। नए राज्य का गठन इन आदिवासी समुदायों को एक ऐसी सरकार देने का प्रयास था जो उनकी विशिष्ट समस्याओं को बेहतर ढंग से समझे, उनकी आवाज़ को प्रमुखता दे, और उनके लिए केंद्रित विकास योजनाएँ बना सके।

💰 संसाधनों का विरोधाभास और उपेक्षा- Chhattisgarh का गठन गंभीर आर्थिक असमानता और दशकों की उपेक्षा के कारण हुआ था। यह क्षेत्र भारत के सबसे खनिज-समृद्ध क्षेत्रों में से एक था, जिसमें कोयला, लोहा और बॉक्साइट जैसे अमूल्य संसाधन प्रचुर मात्रा में थे। विडंबना यह थी कि इतने समृद्ध होने के बावजूद, यह क्षेत्र अविभाजित मध्य प्रदेश के सबसे गरीब और अविकसित क्षेत्रों में बना रहा।

पुरानी राजधानी भोपाल या जबलपुर में थी, और विकास नीतियाँ मुख्य रूप से पश्चिमी मध्य प्रदेश पर केंद्रित रहीं। Chhattisgarh के संसाधन लगातार निकाले जाते रहे, लेकिन उनसे होने वाले राजस्व का निवेश यहाँ की जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढाँचे में पर्याप्त रूप से वापस नहीं किया गया, जिससे यहाँ के लोग आर्थिक रूप से पिछड़े रह गए।

💎 संसाधनों का विरोधाभास- Chhattisgarh भारत के सबसे खनिज-समृद्ध क्षेत्रों में से एक है। यहाँ कोयला, लोहा, बॉक्साइट, और चूना पत्थर का विशाल भंडार है। विडंबना यह थी कि इतने प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न होने के बावजूद, अविभाजित मध्य प्रदेश का यह पूर्वी हिस्सा सबसे गरीब और अविकसित बना रहा।

इस विरोधाभास का मूल कारण था—राजस्व का पलायन। खनिज निकाले जाते रहे और बड़े उद्योगों को लाभ होता रहा, लेकिन इससे प्राप्त राजस्व का एक बड़ा हिस्सा राज्य की राजधानी (भोपाल) में केंद्रित विकास परियोजनाओं पर खर्च किया गया। स्थानीय समुदायों को न तो रोज़गार मिला और न ही उनके क्षेत्र के स्वास्थ्य, शिक्षा या बुनियादी ढाँचे में पर्याप्त निवेश हुआ, जिससे गरीबी की खाई लगातार गहरी होती गई।

🏙️ राजधानी का केंद्रण और उपेक्षा- अविभाजित मध्य प्रदेश में, प्रशासनिक और राजनीतिक शक्ति पुरानी राजधानी भोपाल (और न्यायिक राजधानी जबलपुर) में अत्यधिक केंद्रित थी। इसके चलते, विकास नीतियाँ स्वाभाविक रूप से भौगोलिक रूप से निकटवर्ती पश्चिमी मध्य प्रदेश पर अधिक केंद्रित रहीं।

Chhattisgarh जैसे सुदूर पूर्वी क्षेत्र, जो अपनी पहचान में अलग था, प्रशासनिक दूरी के कारण उपेक्षित रहा। Chhattisgarh के प्रचुर खनिज संसाधन निकाले जाते रहे, जिससे राज्य को बड़ा राजस्व मिला, लेकिन इस लाभ का बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ के बुनियादी ढाँचे, शिक्षा या स्वास्थ्य में वापस निवेश नहीं किया गया। यह अन्यायपूर्ण केंद्रीकरण ही नए, अलग राज्य की स्थापना की सबसे बड़ी आर्थिक प्रेरणा बना।

3. राजनीतिक संघर्ष और लोकतांत्रिक जीत

✊ लंबा राजनीतिक संघर्ष- Chhattisgarh के गठन की माँग कोई रातोंरात पैदा हुई आकांक्षा नहीं थी, बल्कि यह दशकों पुराना लंबा राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष था। 1920 के दशक में पंडित सुंदरलाल शर्मा द्वारा रखी गई नींव से लेकर, इस आंदोलन ने धीरे-धीरे जोर पकड़ा।

‘Chhattisgarh महासभा’ (1950s) और बाद में ‘छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा’ (जिसका नेतृत्व शंकर गुहा नियोगी ने किया) जैसे प्रारंभिक आंदोलनों ने अपनी सांस्कृतिक अस्मिता और आर्थिक न्याय के लिए ज़ोरदार आवाज़ उठाई। इन आंदोलनों ने स्पष्ट किया कि प्रशासनिक उपेक्षा और संसाधनों के शोषण के खिलाफ़ एकमात्र समाधान अलग राज्य का गठन ही है। इस अटूट जन-इच्छाशक्ति ने ही अंततः केंद्र सरकार को इस माँग पर विचार करने के लिए विवश किया।

 🗺️ छोटे राज्यों की आवश्यकता: कुशल प्रशासन

Chhattisgarh जैसे नए राज्यों के गठन की मांग “विकास के लिए बेहतर प्रशासन” की धारणा पर आधारित थी। तर्क सरल है: अविभाजित मध्य प्रदेश जैसे विशाल और भौगोलिक रूप से जटिल राज्य, खासकर जब वे दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों को कवर करते हैं, तो शासन (Governance) में कुशल नहीं रह पाते।

राजधानी से दूरी के कारण, स्थानीय समस्याओं को समझना और तेज़, केंद्रित विकास नीतियां लागू करना मुश्किल हो जाता है। छोटा राज्य बनने से प्रशासनिक विकेंद्रीकरण होता है। इससे नौकरशाही स्थानीय ज़रूरतों के करीब आती है, नीतियों का निर्माण अधिक प्रभावी होता है, और संसाधनों का वितरण अधिक न्यायसंगत और लक्षित तरीके से किया जा सकता है।

🤝 राजनीतिक इच्छाशक्ति और अधिनियमन

छत्तीसगढ़ की स्थापना के पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति का निर्णायक योगदान था। दशकों के सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष के बाद, सन 2000 में केंद्र की तत्कालीन सरकार ने इस माँग की वैधता और व्यापक जन-समर्थन को पहचाना।

यह निर्णय केवल प्रशासनिक आवश्यकता पर आधारित नहीं था, बल्कि लोकतांत्रिक माँग को पूरा करने की दृढ़ता को दर्शाता था। केंद्र सरकार ने मध्यप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 को पारित किया, जिसने औपचारिक रूप से छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। यह अधिनियम यह साबित करता है कि जब जन-आकांक्षाएँ मज़बूत होती हैं, तो राजनीतिक नेतृत्व को अंततः उन्हें स्वीकार करना पड़ता है, जिससे एक नए राज्य का जन्म होता है।

4. 25 साल बाद: लाभ, चुनौतियाँ और अधूरा एजेंडा (लगभग 450 शब्द)

🎉 गठन के लाभ (Gains)

Chhattisgarh राज्य के गठन का सबसे बड़ा लाभ पहचान की स्थापना था। छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को अब राष्ट्रीय और संवैधानिक स्तर पर सम्मान मिला। दूसरा महत्वपूर्ण लाभ था बेहतर प्रशासन।

राजधानी रायपुर के करीब आने से, निर्णय लेने की प्रक्रिया स्थानीय ज़रूरतों के प्रति अधिक संवेदनशील हुई। राज्य अपनी आदिवासी और गरीब आबादी के लिए केंद्रित सामाजिक योजनाएँ बनाने में सक्षम हुआ, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच बेहतर हुई। इस प्रशासनिक विकेंद्रीकरण ने विकास को तेज़ करने और पिछली उपेक्षा को दूर करने की दिशा में पहला कदम उठाया।

पहचान की स्थापना और सांस्कृतिक गौरव – राज्य के गठन का सबसे महत्वपूर्ण लाभ छत्तीसगढ़ की विशिष्ट पहचान की स्थापना था। मध्य प्रदेश के विशाल भू-भाग में, छत्तीसगढ़ी भाषा, बोली और समृद्ध आदिवासी संस्कृति को अक्सर हाशिये पर रखा जाता था। नया राज्य बनने से, छत्तीसगढ़ी भाषा को आधिकारिक और शैक्षणिक मंचों पर सम्मान मिला।

पंडवानी, राउत नाचा जैसी लोक कलाओं और स्थानीय त्योहारों को सरकारी संरक्षण प्राप्त हुआ, जिससे उनका प्रचार-प्रसार बढ़ा। इस भौगोलिक और राजनीतिक पहचान ने स्थानीय लोगों में आत्म-सम्मान और गौरव की भावना का संचार किया। अब, वे अपनी सांस्कृतिक अस्मिता के साथ बिना किसी हीनता के आगे बढ़ सकते थे, जो कि दशकों से उपेक्षित रही थी।

🧑‍💼 बेहतर प्रशासन- नए राज्य के गठन से प्रशासनिक विकेंद्रीकरण हुआ। राजधानी रायपुर मध्य प्रदेश की पुरानी राजधानी भोपाल की तुलना में स्थानीय ज़रूरतों के बहुत करीब आ गई। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेज़ी आई, और नीतियाँ बनाते समय स्थानीय परिस्थितियों और समस्याओं, खासकर आदिवासी क्षेत्रों की ज़रूरतों को अधिक प्रभावी ढंग से समझा और संबोधित किया जाने लगा।

🎯 विशिष्ट सामाजिक योजनाएँ – अलग राज्य बनने के बाद, छत्तीसगढ़ अपनी बड़ी आदिवासी और गरीब आबादी की ज़रूरतों पर केंद्रित नीतियाँ बनाने में सक्षम हुआ। पहले, बड़े राज्य में जो योजनाएँ सामान्य थीं, अब उन्हें स्थानीय संस्कृति और परिस्थितियों के अनुसार ढाला गया। इससे खाद्य सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी विशिष्ट योजनाएँ (जैसे वन अधिकार कानून का प्रभावी क्रियान्वयन) लागू करना आसान हो गया।

🚧 अधूरी चुनौतियाँ- छत्तीसगढ़ के गठन के बावजूद, कुछ मूल चुनौतियाँ अभी भी अधूरी हैं। सबसे बड़ी समस्या नक्सलवाद की है, जिसका समाधान अलग राज्य के गठन से नहीं हो पाया। इसके अलावा, ‘संसाधन का अभिशाप’ (Resource Curse) अभी भी जारी है: राज्य खनिज संपदा से समृद्ध होने के बावजूद, आदिवासी बहुल क्षेत्रों में गहन गरीबी और कुपोषण बना हुआ है।

यह विरोधाभास दर्शाता है कि केवल प्रशासनिक राजधानी बदलने से न्याय नहीं मिलता। पलायन और रोज़गार की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। जब तक संसाधनों का लाभ वास्तव में अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुँचेगा, तब तक सामाजिक-आर्थिक न्याय का एजेंडा अधूरा रहेगा।

⛏️ खनिज का अभिशाप – संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद गरीबी बने रहने को ‘खनिज का अभिशाप’ (Resource Curse) कहते हैं। छत्तीसगढ़ में, आदिवासी बहुल क्षेत्रों में खनन से होने वाले लाभ का बड़ा हिस्सा स्थानीय विकास पर खर्च नहीं होता।

इसके बजाय, यह राजस्व अक्सर राजधानी-केंद्रित परियोजनाओं में जाता है। खनन से पर्यावरण नष्ट होता है और स्थानीय लोगों को विस्थापन झेलना पड़ता है। यह दिखाता है कि सिर्फ़ नया राज्य बनने से वितरण की असमानता और भ्रष्टाचार की समस्याएँ हल नहीं हुईं, जिससे गरीब और कुपोषण बरकरार हैं।

🚶 पलायन और रोज़गार का सवाल – Chhattisgarh में स्थानीय युवाओं के पलायन की समस्या अभी भी एक बड़ा सवाल है। खनिजों से होने वाली आय से पर्याप्त औद्योगिक विकास और गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन नहीं हो पाया है। उच्च शिक्षा और बेहतर आजीविका के अवसरों की तलाश में, ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के युवा अभी भी बड़े शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं। यह स्थिति इस बात को दर्शाती है कि विकास का लाभ और रोज़गार के अवसर अभी भी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं।

🌾 निष्कर्ष: न्याय का कटोरा कहाँ? – Chhattisgarh को उसकी कृषि समृद्धि के कारण गर्व से ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, लेकिन राज्य के 25 साल पूरे होने पर यह सवाल सबसे महत्वपूर्ण है: क्या यह वास्तव में ‘न्याय का कटोरा’ बन पाया है?

गठन का मूल उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना था। यह सच है कि प्रशासनिक सुविधा बढ़ी है और सांस्कृतिक पहचान मज़बूत हुई है, लेकिन गरीबी, कुपोषण, नक्सलवाद और संसाधनों के बावजूद आर्थिक असमानता अभी भी गहराई से बनी हुई है। जब तक संसाधनों का लाभ राज्य के अंतिम आदिवासी व्यक्ति तक नहीं पहुँचता, और पलायन रुकता नहीं, तब तक न्याय का एजेंडा अधूरा ही रहेगा। नया राज्य बनना एक उपलब्धि थी, अब न्याय दिलाना उसकी नैतिक अनिवार्यता है।

5. ⚖️ Chhattisgarh और न्याय की कसौटी – Chhattisgarh का गठन, एक महान लोकतांत्रिक उपलब्धि थी। इसका उद्देश्य केवल प्रशासनिक या भौगोलिक विभाजन नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक न्याय प्राप्त करना था।
छत्तीसगढ़िया मूल को दस्तावेजी तौर पर मिला—एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, स्थानीय स्वशासन का अधिकार और संसाधनों पर केंद्रित नीतियाँ। मगर खोया—अमूल्य आदिवासी वन भूमि और खनन से होने वाले पर्यावरण का संतुलन।
फायदा उठाया—मुख्य रूप से राज्य के नए राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्रों (जैसे रायपुर) में मौजूद ठेकेदारों, नौकरशाहों और नव-धनाढ्य वर्गों ने।

वंचित रह गया—अधिकांशतः दूरदराज का आदिवासी और ग्रामीण समुदाय, जो आज भी गरीबी, कुपोषण और पलायन से जूझ रहा है।
यह विफलता न केवल प्रशासन की ढीली पकड़ और शासन की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाती है, बल्कि जन जागरूकता के अभाव का भी परिणाम है, जिसके कारण जनता अपने संसाधनों पर अपना अधिकार ठीक से जता नहीं पाई। न्याय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी शासन (नीति निर्माण) और प्रशासन (कार्यान्वयन) दोनों की सामूहिक है।

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