किसी भी कंपनी को शेयर बाजार में प्रवेश करने से पहले प्राइमरी मार्केट में IPO यानी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग लॉन्च करनी होती है। इस प्रक्रिया में कंपनी सीधे निवेशकों को अपने शेयर ऑफर करती है, जिससे उसे फंड जुटाने में मदद मिलती है। प्राइमरी मार्केट में यह लेन-देन कंपनी और निवेशक के बीच होता है।
कई बार ऐसा होता है कि निवेशक IPO के लिए आवेदन करते हैं लेकिन उन्हें शेयर अलॉट नहीं होते। इसकी सबसे आम वजह होती है IPO का ओवरसब्सक्राइब हो जाना।
ओवरसब्सक्रिप्शन क्या होता है?
जब किसी कंपनी के द्वारा इश्यू किए गए शेयरों से अधिक संख्या में निवेशक शेयर खरीदने के लिए आवेदन करते हैं, तो उस स्थिति को ओवरसब्सक्रिप्शन कहा जाता है। इस स्थिति में सभी निवेशकों को शेयर देना संभव नहीं होता, इसलिए रजिस्ट्रार लॉटरी सिस्टम के जरिए यह तय करता है कि किसे शेयर अलॉट किए जाएंगे। यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होती है ताकि किसी के साथ भेदभाव न हो।
उदाहरण से समझिए अलॉटमेंट की प्रक्रिया:
मान लीजिए किसी कंपनी के IPO में 10 निवेशकों ने कट-ऑफ प्राइस पर आवेदन किया है, लेकिन कंपनी ने केवल 29 शेयर इश्यू किए हैं। इस स्थिति में रजिस्ट्रार लॉटरी के जरिए तय करेगा कि किन निवेशकों को शेयर मिलेंगे। मान लें निवेशक क्रमांक 4, 5, 6, 7, 8, 1 और 2 को एक-एक शेयर मिलते हैं, जबकि बाकी को कुछ नहीं मिलता।
इसलिए जरूरी है कि IPO में आवेदन करते समय आप कट-ऑफ प्राइस या उससे अधिक पर बोली लगाएं, अन्यथा आप लॉटरी प्रक्रिया में शामिल ही नहीं हो पाएंगे।
IPO और शेयर में क्या अंतर है?
किसी भी कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज (जैसे BSE या NSE) पर लिस्ट होने से पहले प्राइमरी मार्केट में IPO लाना होता है। IPO के जरिए जो शेयर बेचे जाते हैं, वही बाद में सेकेंडरी मार्केट में ट्रेड होते हैं। प्राइमरी मार्केट में निवेशक और कंपनी के बीच सीधा लेन-देन होता है, जबकि सेकेंडरी मार्केट में निवेशक एक-दूसरे से शेयर खरीदते-बेचते हैं।
क्या आप जानना चाहते हैं कि IPO में निवेश के लिए कौन-से टिप्स सबसे ज्यादा कारगर होते हैं?
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