जब हम देश की बात करते हैं, तो हमारे हृदय में सर्वप्रथम देशभक्ति, निष्ठा और समर्पण का भाव जागृत होना चाहिए। जिस भूमि का अन्न, जल और नमक हम ग्रहण करते हैं, उसके प्रति हमारा नैतिक और भावनात्मक कर्ज बनता है। यदि हम इस देश का नमक खा रहे हैं, तो यह हमारा धर्म है कि हम इसके लिए श्रद्धा और पूर्ण समर्पण के साथ कार्य करें।
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वर्तमान समय में परिस्थितियाँ निरंतर परिवर्तनशील हैं और नई चुनौतियाँ हमारे समक्ष हैं। यदि हम सीमा पर तैनात सैनिकों के व्यवहार का अवलोकन करें तो पाएंगे कि शांति काल में भी वे पड़ोसी देशों के सैनिकों से व्यावहारिक संबंध बनाए रखते हैं। किंतु युद्ध की घड़ी में वही संबंध देशहित के आगे गौण हो जाते हैं। हमें भी इसी भावना से आज की परिस्थितियों को समझते हुए अपने सोच और आचरण को राष्ट्रहित में ढालने की आवश्यकता है।
चाहे बात कला, संस्कृति या किसी अन्य क्षेत्र से जुड़ी हो, हर निर्णय का आधार राष्ट्र की अस्मिता और सुरक्षा होना चाहिए। यदि देश के सम्मान पर आंच आती है, तो हमें व्यक्तिगत भावनाओं से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि मानना चाहिए।
सैनिक भले सीमाओं पर लड़ते हैं, परंतु हर नागरिक का भी यह कर्तव्य है कि अपने जीवन के हर क्षेत्र में संयम, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा को अपनाते हुए राष्ट्र सेवा करे। आज आवश्यकता इस बात की है कि प्रांत, भाषा और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर ‘भारत’ को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाया जाए।
देश के सम्मान और अखंडता के लिए सोच-समझकर उठाया गया प्रत्येक कदम ही हमारा सच्चा राष्ट्रधर्म होगा।



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