समावेशी शिक्षा के अंतर्गत, रायपुर के ठाकुर प्यारेलाल पंचायत ग्रामीण एवं विकास संस्थान, निमोरा में दृष्टिबाधित बच्चों के लिए एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। यह पहल समग्र शिक्षा, रायपुर के राज्य परियोजना कार्यालय और कोलकाता के एम. जंक्शन के संयुक्त तत्वावधान में की गई है।
रायपुर में प्रशिक्षण कार्यक्रम दो चरणों में आयोजित किया जा रहा है। पहला चरण 28 से 30 जुलाई, 2025 तक है, और रायपुर में दूसरा चरण 31 जुलाई से 2 अगस्त, 2025 तक चलेगा। इस कार्यक्रम में कुल 20 जिलों से 80 दृष्टिबाधित बच्चे और उनके सहायक के रूप में बी.आर.पी. (समावेशी शिक्षा) और स्पेशल एजुकेटर भाग ले रहे हैं। समग्र शिक्षा से श्रीमती सीमा गौरहा (सहायक संचालक) और श्रीमती श्यामा तिवारी (समावेशी समन्वयक) इस प्रशिक्षण का मार्गदर्शन कर रही हैं।
अंतर्राष्ट्रीय लाइब्रेरी बुकशेयर के मास्टर ट्रेनर श्री संजोग, शेफाली और अंकिता बच्चों को स्मार्टफोन का उपयोग करना सिखा रहे हैं। प्रशिक्षण में स्मार्टफोन को ऑन-ऑफ करना, विभिन्न गेस्चर क्रियाएं, और टॉक बैंक के माध्यम से स्मार्टफोन को सुगम्य बनाना शामिल है। बच्चों को इजी रीडर और बुकशेयर जैसे एप्लिकेशन का उपयोग करना भी सिखाया जा रहा है। इसके अलावा, कीबोर्ड का उपयोग करके टाइपिंग का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य दृष्टिबाधित बच्चों को अपनी कक्षा की पुस्तकों को आसानी से पढ़ने और भविष्य में अपनी परीक्षा स्वयं लिखने में सक्षम बनाना है। एम. जंक्शन की टीम, बी.आर.पी. और स्पेशल एजुकेटर के सहयोग से बच्चों को सभी प्रायोगिक कार्यों का अभ्यास कराया जा रहा है।
क्या है समावेशी शिक्षा ?
🌍 समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जिसमें सभी बच्चों को—चाहे वे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक या आर्थिक रूप से किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना कर रहे हों—समान अवसर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया जाता है।
✨ समावेशी शिक्षा की मुख्य बातें:
- भेदभाव रहित वातावरण: इसमें सामान्य और विशेष आवश्यकता वाले बच्चे एक ही कक्षा में साथ पढ़ते हैं।
- सहयोग और समावेश: यह बच्चों में आपसी समझ, सहिष्णुता और सामाजिक समन्वय को बढ़ावा देती है।
- विशेष सहायता: विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को अतिरिक्त संसाधन और सहयोग प्रदान किया जाता है।
- समानता का सम्मान: यह शिक्षा प्रणाली विविधता को स्वीकार करती है और सभी को समान अधिकार देती है।
यह शिक्षा प्रणाली न केवल बच्चों के व्यक्तिगत विकास में सहायक है, बल्कि एक समावेशी और संवेदनशील समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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