Jashpur villagers are searching for gold : जशपुर। आधुनिक दौर में जहाँ रोजगार के नए–नए विकल्प सामने आ रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में आज भी कई ग्रामीण अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवित रखते हुए जीवनयापन कर रहे हैं। जिले की इब और मैनी नदियों के किनारे इन दिनों फिर से सोना खोजने की पारंपरिक प्रक्रिया शुरू हो गई है। सोशल मीडिया पर इसका वीडियो सामने आने के बाद यह अनोखी परंपरा एक बार फिर सुर्खियों में है।
सुबह होते ही शुरू हो जाती है ‘सोना खोजने’ की मेहनत
ग्रामीण सुबह-सवेरे टोकनी और छलनी लेकर नदी किनारे पहुँच जाते हैं। महिलाएँ और पुरुष मिलकर रेत छानते हैं, और दिनभर की मेहनत के बाद रेत के महीन कणों में छिपा हुआ सोना निकालते हैं। साढ़ुकछार के इतवारी बाई और दिनेश राम बताते हैं कि यह काम उनके पूर्वजों से चला आ रहा है और आज भी उनकी मुख्य आजीविका बना हुआ है। इनके अनुसार—
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“हमारी रोज़ की मजदूरी के बराबर आमदनी हो जाती है।”
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“कई बार दो दिन की मजदूरी जितना सोना भी मिल जाता है।”
कम हो रहे सोने के कण, फिर भी जारी है परंपरा
तामामुंडा, भालूमुंडा, लवाकेरा और आसपास के गांवों के लोगों का कहना है कि अब रेत में सोने की मात्रा पहले की तुलना में कम हो गई है। इसके बावजूद यह परंपरा आज भी उनके लिए आय का एक स्थाई साधन बनी हुई है। जो थोड़ा-बहुत सोना मिलता है, उसे स्थानीय बाजार में बेचकर परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी की जाती हैं।
परंपरा, मेहनत और उम्मीद का संगम
नदी किनारे रेत छानते लोगों का दृश्य सिर्फ एक मेहनत नहीं बल्कि उस उम्मीद की तस्वीर भी पेश करता है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है। जशपुर की यह अनोखी परंपरा न सिर्फ स्थानीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आधुनिकता के बीच भी कई परिवार प्रकृति और पारंपरिक ज्ञान पर आधारित जीवन जी रहे हैं।



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