Categories

December 2, 2025

वेब न्यूज़ पोर्टल संघर्ष के स्वर

संघर्ष ही सफलता की पहली सीढ़ी है।

Mahesh Bhatt movie Arth : अर्थ’ फिल्म 1982, महिलाओं के नजरिए से बनाया गया सिनेमा, 43 साल बाद भी प्रासंगिक

Mahesh Bhatt movie Arth : रायपुर। भारतीय सिनेमा में 1980 के दशक में पुरुषवादी दृष्टिकोण का बोलबाला था। ऐसे समय में जब महिलाओं के अनुभव और दृष्टिकोणों को पर्दे पर कम दिखाया जाता था, वहीं महेश भट्ट ने ‘अर्थ’ (1982) के माध्यम से महिलाओं की भावनाओं, संघर्ष और आत्मसम्मान को एक संवेदनशील रूप में पेश किया। 43 साल पहले, यानी 3 दिसंबर 1982, इस फिल्म ने सिनेमाघरों में अपनी जगह बनाई। फिल्म ने न केवल दर्शकों को प्रभावित किया बल्कि समकालीन आलोचकों और फिल्म समीक्षकों के बीच भी महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बनी।

Ratna Jyotish : सूर्य के अशुभ प्रभाव में माणिक्य क्यों? ,चंद्रमा कमजोर हो तो मोती पहनें

 फिल्म का संक्षिप्त परिचय

  • निर्देशक: महेश भट्ट

  • मुख्य कलाकार: शबाना आजमी (पूजा), स्मिता पाटिल (कविता), कुलभूषण खरबंदा (इंदर), परवीन बाबी

  • शैली: सेमी-आटोबायोग्राफिकल ड्रामा

  • मुख्य विषय: विवाहेतर संबंध, नारी आत्म-सम्मान, पारिवारिक संघर्ष

‘अर्थ’ महेश भट्ट की अपनी व्यक्तिगत जिंदगी और अभिनेत्री परवीन बाबी के साथ उनके विवाहेतर संबंधों से प्रेरित थी। फिल्म के माध्यम से भट्ट ने महिला केंद्रित दृष्टिकोण को पर्दे पर उतारा, जो उस समय के सिनेमा में अत्यंत कम देखने को मिलता था।

 कहानी और मुख्य पात्र

फिल्म में दो प्रमुख महिला पात्र हैं –

  1. कविता (स्मिता पाटिल) – एक संवेदनशील और भावनात्मक महिला, जो प्यार और अपने जीवन की खुशियों की तलाश में है।

  2. पूजा (शबाना आजमी) – एक मजबूत और आत्मनिर्भर महिला, जो अपने विवाह और घर के प्रति गहरी प्रतिबद्धता रखती है।

कुलभूषण खरबंदा ने इंदर का किरदार निभाया, जो कथा में मुख्य पुरुष पात्र है।

फिल्म की कहानी एक विवाहेतर प्रेम त्रिकोण के इर्द-गिर्द घूमती है। कविता का इंदर के प्रति प्रेम और पूजा के पति के साथ उसके संबंध का जटिल भावनात्मक चित्रण दर्शाया गया है।

 यादगार संवाद और दृश्य

फिल्म में एक अत्यंत चर्चित दृश्य है:

कविता (स्मिता पाटिल) पूजा (शबाना आजमी) से कहती हैं:

“मैं इंदर को चाहती थी… तुम्हारे पति को नहीं। मैं अपना घर बसाना चाहती थी, तुम्हारा घर उजाड़ना नहीं चाहती थी।”

पूजा जवाब देती हैं:

“मेरा घर था ही नहीं, इसलिए तुमने कुछ नहीं उजाड़ा।”

यह संवाद दर्शकों को फिल्म के गहरे सामाजिक और भावनात्मक संदेश से जोड़ता है। यह दृश्य नारी आत्मसम्मान, प्रेम, और पारिवारिक संघर्ष की जटिलताओं को खूबसूरती से दिखाता है।

 सामाजिक और सिनेमाई महत्व

  • महिला केंद्रित दृष्टिकोण: उस समय के पुरुषवादी सिनेमा में महिलाओं की भावनाओं और संघर्ष को दिखाना दुर्लभ था।

  • विवाहेतर संबंधों की संवेदनशील प्रस्तुति: फिल्म ने इस विषय को संवेदनशील और नैतिक दृष्टि से प्रस्तुत किया।

  • नारी सशक्तिकरण: फिल्म ने महिलाओं को केवल पार्श्वभूमि में नहीं रखा, बल्कि उनकी भावनाओं और निर्णयों को कथा का केंद्र बनाया।

  • महत्वपूर्ण आलोचनात्मक मान्यता: स्मिता श्रीवास्तव जैसे फिल्म समीक्षक इसे उस दशक की महिलाओं के दृष्टिकोण से बनाई गई सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक मानते हैं।

About The Author