High Court Decision, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक बार फिर सरकारी अधिकारियों के अधिकारों की रक्षा करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। बिलासपुर की महिला उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) एस.एस. टेकाम के खिलाफ पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी वसूली आदेश को न्यायालय ने निरस्त कर दिया है। अदालत ने इस पूरे प्रकरण में पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर सख्त टिप्पणी की है और कहा है कि बिना उचित कारण बताए और संवैधानिक प्रक्रिया का पालन किए बिना वसूली का आदेश जारी करना पूर्णतः अवैध है।
अदालत ने कहा — “संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन अस्वीकार्य”
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान साफ शब्दों में कहा कि किसी भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी से वेतन या भत्तों की वसूली करने से पहले विभाग को स्पष्ट कारण बताना और उचित प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है। ऐसा न करने की स्थिति में यह कदम संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा। अदालत ने पुलिस विभाग के रवैये को मनमाना और नियमविहीन बताया।
डीएसपी टेकाम ने दी थी वसूली आदेश के खिलाफ याचिका
सूत्रों के अनुसार, डीएसपी एस.एस. टेकाम ने अपने खिलाफ जारी वसूली आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि विभाग ने बिना किसी ठोस कारण या पूर्व सूचना के उनके वेतन से एक निश्चित राशि की कटौती कर दी थी। यह कार्रवाई न केवल अनुचित थी बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन भी करती थी।
न्यायालय ने वसूली आदेश को बताया मनमाना
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस मुख्यालय ने जिस तरीके से वसूली आदेश जारी किया, वह पूरी तरह से न्यायिक और प्रशासनिक मर्यादाओं के विपरीत था। न्यायालय ने टिप्पणी की कि ऐसे आदेश न केवल कर्मचारी के सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर भी प्रश्न खड़ा करते हैं।
भविष्य में नियमों के पालन का निर्देश
कोर्ट ने पुलिस विभाग को यह भी निर्देश दिया कि भविष्य में इस तरह की कार्रवाई करने से पहले संबंधित अधिकारी को नोटिस देकर जवाब का अवसर दिया जाए। साथ ही, वसूली या वेतन कटौती के सभी आदेश कानूनी प्रक्रिया और विभागीय नियमों के अनुरूप होने चाहिए।
डीएसपी को मिली राहत, कटौती की राशि लौटाने के निर्देश की संभावना
फैसले के बाद डीएसपी एस.एस. टेकाम को बड़ी राहत मिली है। अदालत के निर्णय के बाद उम्मीद है कि विभाग को उनके वेतन से की गई कटौती की राशि वापस करनी होगी। यह फैसला न केवल टेकाम के लिए बल्कि उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए राहत का संदेश है जिन्हें बिना कारण वसूली आदेशों का सामना करना पड़ता है।
कोर्ट के इस फैसले को माना गया नजीर
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अन्य विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए भी मिसाल बनेगा। इससे स्पष्ट संदेश गया है कि किसी भी अधिकारी के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और हर निर्णय संविधान और नियमों की सीमाओं में रहकर ही किया जाना चाहिए।



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